रविवार, २० एप्रिल, २०१४

जाता येता,
दिसतात चेहरे..।
काही ओलखीचे
काही अनोलखी..।
काही सुकलेले,
काही फुललेले..।
काही हसरे,
काही गहीरे..।
काही निश्चयी,
काही उच्छ्रंखूल..।
काही सावरलेले,
काही बावरलेले..।
काही सजीव,
काही निर्जीव..।
काही खोडकर,
काही गप्पगार..।
काही साकार,
काही निर्वीकार..।
काही बोलके,
काही मुके..।
पण,
ह्यातील थोडेचं असतात आपले,
बाकी सारे परके..।।
-रो..

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